तातापानी महोत्सव 2016 - एक झलक


fdg.jpg Tatapani Mahotsav 2016 is organized in Tatapani from 14th to 16th January, 2016

बलरामपुर जिला मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर दूर स्थित है तातापानी जो प्राकृतिक रूप से निकलते गरम पानी के लिए प्रदेशभर में प्रसिद्ध है। यहां के कुण्डों व झरनों में धरातल से बारह माह गरम पानी प्रवाह करता रहता है। स्थानीय भाषा में ष्ताताष् का अर्थ होता है गरम। इसी लिए इस स्थल का नाम तातापानी रखा गया है। यहां ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री राम ने खेल खेल में सीता जी की और पथ्थर फेका जो की सीता मां के हाथ में रखे गरम तेल के कटोरे से जा टकराया। गरम तेल छलक कर धरती पर गिरा एवं जहां जहां तेल की बूंदें पडी वहां से गरम पानी धरती से फूटकर निकलने लगा। स्थानीय लोग यहां की धरती पवित्र मानते हैं एवं कहा जाता है कि यहां गरम पानी से स्नान करने से सभी चरम रोग खत्म हो जाते हैं। इस अद्भुत दृश्य को देखने एवं गरम पानी का मजा लेने प्रदेशभर से लोग यहां आते हैं। यहां के शिव मंदिर में लगभग चार सै वर्ष पुरानी मूर्ति स्थपित है जिसकी पूजा करने हर वर्ष मकर संक्रान्ति के पर्व पर लाखों की संख्या में पर्यटक यहां आते हैं। इस दौरान यहां विशाल मेला आयोजित किया जाता है जिसमें पर्यटक झूलों, मीना बज़ार व अन्य दूकानों का मज़ा ले सकते हैं।

बलरामपुर के प्रमुख पर्यटन स्थल

डीपाडीह

डीपाडीह- अम्बिकापुर से कुसमी मार्ग पर 75 कि.मी. दूरी पर डीपाडीह नामक स्थान है। डीपाडीह के आस-पास के क्षेत्रों में 8वीं से 14वीं शताब्दी के शैव एवं शाक्य संप्रदाय के पुरातात्विक अवशेष बिखरे हुए हैं। डीपाडीह के आसपास अनेक शिव मंदिर रहे होंगे। यहां अनेक शिवलिंग, नदी तथा देवी दुर्गा की कलात्मक मूर्ति स्थित है। इस मंदिर के खंभों पर भगवान विष्णु, कुबेर, कार्तिकेय तथा अनेक देवी-देवताओं की कलात्मक मूर्तियां दर्शनीय हैं। देवी प्रतिमाओं में एक विशिष्ट मूर्ति महिषासुर मर्दिनी की है। देवी-चामुंडा की अनेक प्रतिमाएं हैं। उरांव टोला स्थित शिव मंदिर अत्यंत कलात्मक है। शिव मंदिर के जंघा बाह्य भित्तियों में सर्प, मयूर, बंदर, हंस एवं मैथुनी मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। सावंत सरना परिसर में पंचायन शैली में निर्मित शिव मंदिर है। इस मंदिर के भित्तियों पर आकर्षक ज्यामितिय अलंकरण हैं। मंदिर का प्रवेष द्वार गजभिषेकिय लक्ष्मी की प्रतिमा से सुशोभित है। उमा-महेश्वर की आलिंगरत प्रतिमा दर्शनीय है। इस स्थान पर रानी पोखरा, बोरजो टीला, सेमल टीला, आमा टीला आदि के कलात्मक भग्नावशेष दर्शनीय हैं। डीपाडीह की मैथुनी मूर्तियां खजुराहो शैली की बनी हुयी है।
दर्शनीय स्थल - उरांव टोला शिव मंदिर, सावंत सरना प्रवेश द्वार, महिषासुर मर्दिनी की विशिष्ट मूर्ति, पंचायतन शैली शिव मंदिर, गजाभिषेकित की लक्ष्मी मूर्ति, उमा-महेश्वर की आलिंगनरत मूर्ति, भगवान विष्णु, कुबेर, कार्तिकेय आदि की कलात्मक मूर्तियां, रानी पोखरा, बोरजो टीला, सेमल टीला, आमा टीला और खजुराहो शैली की मैथुनी मूर्तियां हैं।

सेमरसोत अभ्यारण्य

सेमरसोत अभ्यारण्य- अम्बिकापुर-रामानुजगंज मार्ग पर 58 कि.मी. की दूरी से इसकी सीमा प्रारंभ होती है। इस अभ्यारण्य में सेंदूर, सेमरसोत, चेतन तथा साॅसू नदियों का जल प्रवाहित होता है। अभ्यारण्य के अधिकांश क्षेत्र में सेमरसोत नदी बहती है। इसलिए इसका नाम सेमरसोत पड़ा। सेमरसोत अभ्यारण्य प्रायः बांस वनों से आच्छादित है। इसका क्षेत्रफल 430.36 वर्ग कि.मी. है। इस अभ्यारण्य को सौंदर्यशाली बनाने में साल, सरई, आम, तेंदू आदि वृक्षों के कुंज सहायक हैं। अभ्यारण्य में जंगली जंतुओं में तेंदुआ, गौर, नीलगाय, चीतल, सांभर, कोटरा, सोन कुत्ता, सियार एवं भालू स्वच्छंद विचरण करते देखा जा सकता है। यह अभ्यारण्य नवंबर से जून तक पर्यटकों के लिए खुला रहता है। रात्रि विश्राम हेतु निरीक्षण गृह का निर्माण कराया गया है। अभ्यारण्य में स्थान-स्थान पर वाच टावरों का निर्माण वन विभाग ने कराया है, जिससे पर्यटक प्राकृतिक की सुंदरता का आनंद ले सकें।

अर्जुनगढ

अर्जुनगढ़ नाम स्थान शंकरगढ़ विकासखंड के जोकापाट के बीहड़ जंगल में स्थित है। यहां प्राचीन किले का भग्नावशेष दिखाई पड़ता है। एक स्थान पर प्राचीन लंबी ईटों का घेराव है। इस स्थान के नीचे गहरी खाई है, जहां से एक झरना बहता है। किवदंती है कि यहां पहले एक सिद्धपुरूष का निवास था। इस पहाड़ी क्षेत्र में एक गुफा है, जिसे धिरिया लता गुफा के नाम से जाना जाता है।